नमस्ते!! पहली हिंदी रचना जो blogger पर साझा कर रही हूँ | उम्मीद है आप सबको पसंद आएगी |
जीवन - पीड़ा या क्रीड़ा
क्षण दर क्षण यही सवाल - जीवन पीड़ा या क्रीड़ा ?
मन का नहीं हुआ - पीड़ा, ऊपर वाले के अनुसार हुआ - क्रीड़ा
मसला वही था नज़रिया भिन्न भिन्न
पीड़ा भी वही क्रीड़ा भी वही
अंतर केवल सोच का ही
विकल्प एक प्रश्न दो
या तो हार जाओ फिर मात खाओ
अथवा जीत लो फिर शह हो
पीड़ा में ही क्रीड़ा ढ़ूंढ़ लो
या क्रीड़ा को पीड़ा बना दो
तमस के उस छोर को छू लो
जिस छोर से उजियारा होता है
तो जीवन पीड़ा में भी क्रीड़ा है
प्रश्न केवल अभ्यास का है
निरंतर चलते जाओ
पीड़ा हो तो क्रीड़ा करो
अंतर केवल प्रयास का है
फिर जीवन के पथ पर क्रीड़ा ही क्रीड़ा है!