Hola guys!!! An attempt reminiscing my journey (observations and indulgences) of doing garba since 10/10/10... Also, happy गणेश चतुर्थी marking the beginning of garba fever...
अभिव्यक्ति गरबा
सितंबर का महीना गणपति बप्पा की गूंज से सराबोर
ढोल की ताल पर थिरकते कुछ कदम
तो कुछ ताल की लय से कोसों दूर
हर दिन है एक नया दिन, नया अवतार, नया पहनावा
कुछ देह पर, तो कुछ ज़हन में।
कभी सब एक से पहनावे या एक रंग में -
लय में गुजराती गानों की गूंज से ओतप्रोत
तो कभी अंतर्मन में ही थिरकते अनजान कदम,
मानो मीरा कृष्ण की छवि में मग्न
कान्हा के संग गोपियां / राधा के संग कृष्ण / मीरा कृष्ण में मग्न
कुछ ऐसा रहता गरबा का सफ़र साल दर साल
एक महीने के प्रशिक्षण के बाद पांच दिवसीय समापन
नवरात्रि के आरंभ के पाँच दिनों में -
अभिव्यक्ति गरबा की गूंज से महकता सम्पूर्ण भोपाल!
और कृष्ण-राधा की तरह कहीं नयन मिलते तो कहीं रूह,
कहीं बात बनती तो कहीं नहीं
डांडिया घूम घूमकर वृत्त के एक छोर से दूसरे -
छोर तक बयान करता कई दिलों की दास्तान
अतरंगी भीड़, सतरंगी पहनावे,
पूरा शहर एक नए रूप में ढल सा जाता।
गुजराती पहनावे और आभूषण में लैस युवक युवतियां
गुजराती धुनों पर गरबा खेलते।
और इसी तरह यह एक महीने का सफ़र दुर्गा पूजा के साथ अलविदा कहता हर साल, इस वादे के साथ कि
अगले साल फिर गणपति की गूंज के साथ आना
और
अभिव्यक्ति गरबा की शान बढ़ाना!
2/9/19
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