नमस्ते! हँसना उल्लास हो तभी, उपहास में नहीं| इसी सोच के साथ प्रस्तुत हैं कुछ पंक्तियाँ -
उपहास या उल्लास ?
चलते चलते वो अचानक गिर पड़ा
रास्ते का पत्थर उसकी चाल डगमगा गया
इधर उधर देखा लोगों को हँसता पाया
और उस उपहास में ख़ुद को फँसता पाया
फिर उठ गया अपने आत्म-बल को झंझोड़ कर
एक हँसी भरी अपने ऊपर
और फिर से जीवन में उल्लास खोजते निकल गया!
हँसना सेहत के लिए लाभदायक
पर अच्छा तब हो जब उल्लास हो तब हँसो
उपहास का पात्र किसी को न बनने दो
ख़ुद पर हँसना अच्छा है कभी कभी
अपनी कमियों से रूबरू होने के अवसर हैं ये सभी
पर दूसरों पर हँसना कभी भी अच्छा नहीं
मत भूलो कि हो सकता है कभी तुम भी हो सकते थे वहीँ
उल्लास हो तो सही, पर उपहास न हो वही
जीवन पथ पर उल्लास के कारण ढूंढ़ते चलो
और उपहास को ख़ुद से कोसों दूर करते चलो |