मन मेरा फिर घबराया -
अश्रुधारा बन बरस आया,
मन को मैने लाख समझाया
पर हठीला मन कहाँ समझ पाया?
' जीवन ज़िंदादिली का नाम है
जीवन से ज़िंदादिली - ज़िंदादिली से जीवन।'
कुछ क्षण समझा,
फिर बरस पड़ा!
मैने फिर उसे समझाया
इस बार वह समझ गया।
कुछ क्षण सही - समता को पा गया -
वही समता जो योग है -
जीवन का उद्देश्य है;
उतार चढ़ाव के मनोवेग में -
कभी उदासी कभी उल्लास में
जो तुम कुछ ठहरना सीख गए,
हर हाल में बहना सीख गए -
कि कल जैसा भी था,
कि कल जैसा भी हो!
इस क्षण में बसा है रहस्य -
क्षण भर जी लो मनुष्य!
क्षण ही जीवन का परमाणु,
क्षण दर क्षण जो जी गए,
जीवन को भरपूर पी गए;
बाधाओं के जंजाल में -
उलझ कर फिर सुलझ गए,
और खुशियों के मायाजाल में -
कुछ डूबे फिर उभर गए;
तो जी गए तुम!
क्या बंधन - क्या मोक्ष —
इस भूमंडल में ही परमधाम पा गए तुम!
तो, मन तो घबराएगा -
कुछ विचलित कर जाएगा,
हर हाल को स्वीकारना
जो व्याकुलता को स्वीकारा
वहीं उसका संहार, और धैर्य का सृजन होगा -
इसी समता को अभ्यास से,
ध्यान से, योग से -
जो विकसित करोगे
तो जीवन का रहस्य - स्वयं 'जीवन' खोज लोगे।