कहोगे घर की चार दीवारी में आसान है ज़िंँदगी़
बाहर घनघोर जंगल है, पार नहीं कर पाओगी
रात हो चली है, बाधा आएगी, अंधेरे में मत जाना
अकेले जीवन कैसे पार कर पाओगी?
पर मैं तो पंछी हूँ, उड़ान भरना मेरी फ़ितरत है
मुझे रोकोगे, मेरे सपनों को कैसे रोकोगे
आख़िर, पिंजर तोड़, आस्मान पार कर जाऊंँगी
आज यदि बंदी हूंँ भी, कल आज़ाद हो जाऊंँगी
तुम मेरी, मेरे सपनों की उड़ान आख़िर कब तक रोक पाओगे?
चुनतियों को लाँघकर जीवन जीना सीखा है
बिखरी हूँ कई बार, जुड़ने की अहमियत समझती हूँ
सपने बुनने की ही नहीं, पूरा करने का हौंसला रखती हूँ
आज यदि हताश हूँ, तो कल उल्लासित हो जाऊंँगी
जीवन की बागडोर स्वयं पार कर लूँगी
मैं तो उन्मुक्त पंछी हूँ, गिरने के बाद उड़ना, मेरी फ़ितरत है
तुम मेरी उड़ान कब तक रोक पाओगे?