सांसों का आवागमन
दिल की धड़कन
रक्त का प्रवाह
दिमाग का संचालन
बस यही तो है जीवन
जीवित होने का प्रमाण
तो क्यों इस सरल जीवन को कठिन रूप देना
समाज के कार्यकलापों में बंधना
जब मिट्टी से है उद्गम
पुनः उसी मिट्टी में समापन
तो व्यर्थ है व्याकुलता
मनुष्य की विडंबना
भौतिक सुख की अपेक्षा
या भवकूप से मोह
मनुष्य ना अपनी देह है
ना अपनी रूह
ना अपनी सांसे
ना अपनी कोशिकाएं
ना भौतिकपदार्थ
ना परिवारजन
ना ही जीवन
कुछ समय पश्चात
जीवन ख़त्म होने के पर्यांत
कुछ यादों में सिमटना
ही इंसान का स्वरूप
क्या पाया क्या खोया
सब धरा में धरा रह जाएगा
शायद कुछ रह जाएगा
तो कुछ नेक काज
कुछ बांटी मुस्कुराहटें
और समाज
हम ख़ुद को जैसे भी आँकें
परंतु हम अपरिहार्य नहीं
जीवन का पहिया हमारे साथ या
हमारे बिना भी निरंतर चलता जाएगा
तो जब तक हैं
खुश रहिए, खुश रखिए
यादें बांटिए, यादें संजोईये
और कुछ समय बाद
ख़ुद याद बनने से पूर्व
ख़ुद को एक खुशहाल जीवन का उपहार दीजिए
और समाज को एक उम्दा याद का उदाहरण।
No comments:
Post a Comment