जहाँ हैं वहीं पर हैं
दो मिनिट से
दो दिन से
दो महीने से
दो अरसे से
कहीं और हो सकते थे
कहीं और होते
कहीं और होना भी चाहिए था।
बस कागज़ और कलम की जगह
कंप्यूटर और कीबोर्ड/ फ़ोन और उंगलियों से बुदबुदाते रहतें हैं
लिखते हैं
ग़लत लिखते हैं
फिर सही लिखते हैं
पर ग़लत करते हैं
जो लिखा है
वो भला कैसे ग़लत हो सकता है
जो लिखा है वही तो सही होता है
जो सही होता है वही तो होना होता है
कुछ होने के पीछे कुछ अच्छा होना होता है
बस बातों से बातें बनाना जानते हैं
शब्दों से लिखावट
कुछ होने को समझाना जानते हैं
कुछ न होने को भी।
सांसों के साथ समय निगलते जाते हैं
समय के साथ सांसें
समय हाथों में जकड़ी रेत समान फिसलता जाता है
पलट कर वापस भी नहीं देखता
कुछ देर थमता भी नहीं
निरंतर चलता जाता है
तुम्हारे साथ
तुम्हारे बिना
उसे फ़र्क नहीं पड़ता
और न ऐहसास होता है
तुम्हारे होने का
तुम्हारा ना होना भी –
तुम्हारे होने जैसा
सब बराबर है
फिर क्या फ़र्क पड़ता है
कि मैं कौन हूंँ
तुम कौन हो
वो कौन है
फ़र्क इतना ही कि
दो शब्द जो मैंने कहे
और दो शब्द जो तुमने पढ़े
उनमें सिर्फ़ दो आँखों का अंतर था
और दो नज़रियों का फ़ाँसला -
वैसे दो बातें तो हम हमेशा करते ही रहते हैं
जैसे अभी कीं!
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