I
एक युद्ध ऐसा भी
महाभारत जैसा ही
भाई पर भाई टूटेंगे
मर्यादा के भाग फूटेंगे
एक बाज़ी लगाई जाएगी
स्त्री दांव पर खेली जायेगी
कृष्ण उसे बचाने आयेंगे
जब सब विकल्प मिट जाएंगे
घोर अन्याय बचाएगा
जब अर्जुन शस्त्र उठाएगा
कृष्ण को बनाकर अपना सारथी
जटिल युद्ध का पार्थी
उसके भी हाथ फूले थे
सोचने में विवश डूबे थे
कैसा युद्ध है बताओ कृष्ण
अपनों पर जहां वार भीषण
अर्जुन को व्याकुल पाया
अपना रूप विराट दिखाया
हरि की छवि को देख
अर्जुन का शांत हुआ विवेक
कमरकस तैयार हुआ रण
जो भी हो अब जीवन या मरण
बाणों पर बाण चले
धनुर्धर विकराल मुर्छित पड़े
कैसा संग्राम बहा लहु अचल
जीत हुई पुनः सत्य की अटल।
II
एक युद्ध ऐसा ही
महाभारत जैसा ही
धारणा पर धारणा टूटेगी
व्याकुलता मन में फूटेगी
फिर घोर अन्याय तुम बचाना
सेज सत्य की फिर सजाना
बौखलाना, ढांढस खोना
फिर संभल जाना, कमर कसना
उठाना विवेक रूपी शस्त्र
कर देना मूर्छित तनाव
जीवन का विराट रूप देख
पुनः अपना साहस लपेट
सूझबूझ और ज्ञान तमाम समेट
हरा देना दुराचारी अन्याय
सत्य सदैव स्थापित होगा
मनुज वहीं प्रकाशित होगा।।
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