तो मुलाकात हुई उसी अनुभव से जो पुराने घर की छत सा था
जिसकी आँखों से देखो तो आसमान हजारों ख़्वाब लिए चमकता था
और पहली बारिश की बूंदें उसी तरह मुझे तरोताज़ा करती थीं
बस हम बच्चों की किलकारियों की जगह सड़कों पर चल रहीं गाड़ियों के हॉर्न में कब तब्दील हो गई?
जहाँ एक पूरा जाना पहचाना सा मोहल्ला एक नए अपरिचित शहर की जगह ले चुका है
और वही जानी पहचानी सी गली न जाने किस ओर जा चली है
तारे अब भी उसी स्वरूप में टिमटिमाते हैं इस छत से भी यह देख कर कुछ सुकून सा मिलता है
जो बहुत यत्नों के बाद महसूस मालूम पड़ता है
जैसे पिछला घर छत का पर्यायवाची था
यह घर बगीचे का
जिसका एहसास इस छत से भी महसूस होता ही है
शाम रात में तब्दील हो चली है
और हवाऐं मुझे अपने साथ उन्हीं यादों में बहाकर ले चली हैं
जिनका अस्तित्व मेरे अंतर्मन में आज भी एक महक सा चहक रहा है।
No comments:
Post a Comment